सोमवार, 26 सितंबर 2011

हिडिम्ब के दूसरे संस्करण का लोकार्पण

एस आर हरनोट के बहु चर्चित उपन्यास ‘हिडिम्ब‘ का दूसरा संस्करण ‘आधार प्रकाशन प्रा. लि.‘ से हाल ही में प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास का पहला संस्करण वर्ष 2..4 में आया था और आते ही इसे आलोचकों, लेखकों और पाठकों की भरपूर प्रशंसा मिली। दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में इस उपन्यास का विमोचन प्रख्यात आलोचक-साहित्यकार प्रो. नामवर सिंह ने किया था। उपन्यास का पहला संस्करण वर्ष 2008 में ही समाप्त हो चुका था। हरनोट का यह पहला उपन्यास है जबकि उनके अब तक 7 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इस उपन्यास पर हिमाचल विश्वविद्यालय सहित, पंजाब, पटियाला और कई अन्य विश्वविद्यालयों में एम.फिल तथा पी.एच.डी की जा चुकी है। शायद ही कोई हिन्दी की ऐसी पत्रिका होगी जिसमें इस उपन्यास की समीक्षाएं न आई हों। इस उपन्यास पर जिन प्रमुख्य और वरिष्ठ आलोचकों ने पत्रिकाओं और गोष्ठियों में चर्चा की है उनमें प्रो. मधुरेश, डॉव वीर भारत तलवार,प्रो. सूरज पालीवाल, ज्ञॅ. खगेन्द्र ठाकुर, डॉ. सदानंद शाही, श्रीनिवास श्रीकान्त, ज्ञान प्रकाश विवेक, सुंदर लोहिया, डॉ. रानू मुखर्जी, डॉ. राजेन्द्र बड़गुजर, डॉ. भरत प्रसाद, डॉ. राजेन्द्र कुमार सेन, डॉ. संजय राय, डॉ. पल्लव, नेम चंद अजनबी और डॉ. ललित कार्तिकेय शामिल हैं।

प्रसिद्ध वरिष्ठ आलोचक प्रो. मधुरेश के अनुसार हिडिम्ब ‘‘हिमाचल के एक दुर्गम अंचल को केंद्र में रखकर अपने समय के कुछ बड़े सवालों को उठाता है।  इस उत्तर आधुनिक दौर में भूमंडलीकरण की आंधी में, परिवार, परिवेश, प्रकृति, पर्यावरण, जंगल, जमीन, कैसे नष्ट हो रहे हैं और आदमी किस तरह निःसहाय और अकेला पडता जाता है, हरनोट इसे बहुत धीरज से देखते, समझते और खोलते हैं।‘‘  प्रसिद्ध आलोचक डॉ खगेन्द्र ठाकुर ने इस उपन्यास को राजनीतिक उपन्यास माना है वे कहते हैं कि‘ यह राजनीतिक इसलिए नहीं है कि इसमें एक मंत्री है। राजनीति असल वर्ग-स्वार्थों के टकराव की अभिव्यक्ति है और यही इस उपन्यास की कथा प्राणधारा है।‘‘ साखी के संपादक और जानेमाने आलोचक डॉ. सदानंद शाही के अनुसार ‘‘हरनोट प्रेमचन्द की परम्परा के कथाकार हैं। जब हम किसी कथाकार को प्रेमचन्द की परम्परा का कथाकार कहते हैं तो इसका अर्थ होता है समाज के शापित,दलित और उपेक्षित वर्ग को साहित्य में केन्द्रीयता प्रदान करना। इस दृष्टि से हिडिम्ब एक महत्वपूर्ण उपन्यास है जिसकी कथा में वह तीक्ष्णता और तीव्रता मौजूद है जो मध्यवर्गीय चकाचौंध को भेदकर उस ग्रामीण अंचल तक पहुंचती है जहां आज भी असली भारत निवास करता है।‘‘   प्रख्यात आलोचक प्रो. सूरजपाल का कहना है कि ‘‘हिडिम्ब आज की सत्ता का असली चेहरा प्रस्तुत करता है जिसे हरनोट ने जोरदार मिथ के साथ अपनी पूरी क्षमता के साथ शावणू जैसे दलित के चरित्र के साथ गढा है।‘‘ श्रीनिवास श्रीकान्त, वरिष्ठ कवि और आलोचक के अनुसार ‘‘हिडिम्ब एक रचनात्मक उपन्यास है जो साम, दाम, दण्ड और भेद की नीतियों की व्याख्या करता है और उसे एक स्वस्थ उपाख्यान के कथावृत्त में पिरोता है। इसकी पूरी कहानी कुल 28 कथावृत्तों में उकेरी गई है जिसके विस्तार में हिमाचल के पूरे पर्वतशास्त्र को संजोया गया है। जाति, पार्थक्य, पर्यावरण, देव संस्कृति का सही स्वरुप, अनुबन्धीय विवाहादि इसके कुछ तात्विक पहलू है। हिन्दी में ऐसी रचनाओं से रचनात्मक साहित्य के इतिहास में एक और सकारात्मक अध्याय जुड़ता है, ऐसा कहना अतिशयोक्ति न होगा।‘‘  जानेमाने वरिष्ठ आलोचक और साहित्यकार डॉ. वीरभारत तलवार के अनुसार ‘‘दलित जीवन पर लिखा यह एक ऐसा उपन्यास है कि उसको पढकर आश्चर्यचकित रह जाना पडा। हिन्दी में हिडिम्ब जैसा उपन्यास दलित जीवन पर कोई दूसरा नहीं है!‘‘

कोई टिप्पणी नहीं: