एशियन म्यूजिक संस्था डेनमार्क द्वारा आयोजित शास्त्रीय संगीत संध्या पर अर्चना पैन्यूली के उपन्यास ‘वेयर डू आई बिलान्ग’ का लोकापर्ण डॉ कैनथ ज्यूस्क़, ऐशियन शिक्षा विभाग कोपनहेगन यूनीवर्सिटी के अध्यक्ष द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रबुद्ध श्रोताओं में डेनमार्क में बसे भारतीय समुदाय के कई साहित्य व संगीत प्रेमियों के अतिरिक्त स्थानीय डेन्स भी उपस्थित थे।
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास योरोपीय वातावरण में रह रहे एक ऐसे भारतीय परिवार की कहानी है, जिसके माध्यम से लेखिका ने भारतीय अप्रवासियों की जीवन शैली, संघर्ष, दुविधाएँ, कठिनाइयाँ, उनके सोच-विचार, दो संस्कृतियों के बीच उनकी जूझ व आप्रवासन समस्याओं को दर्शाया है। उपन्यास की प्रमुख पात्र नवयुवती रीना है। रीना के जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष 20 से 25 तक उपन्यास में वर्णित है। इन पाँच वर्षो के समय में आज के युग की किसी महत्वाकांक्षी नवयुवती को अपना कैरियर बनाने के अतिरिक्त एक विशेष आवश्यकता जीवन साथी की खोज भी होती है। आप्रवासी होने के कारण से कई द्विविधाएँ पैदा हो जाती हैं। उपन्यास आप्रवासन के सरोकारों एवं प्रवासित परिवार व समुदाय के विषय में बहुत कुछ बयाँ करता है।
लोकापर्ण समारोह में डा कैनथ ज्यूस्क के अतिरिक्त रितु कृष्णन, अखिला रमन, मैरी ओहारा, व गुरूचरण मिंगलानी ने उपन्यास पर अपने विचार प्रस्तुत किये। डा कैनथ ज्यूस्क ने कहा, “एक स्केन्डिनेवियन देश डेनमार्क में रह कर यहाँ के समाज पर हिन्दी में उपन्यास लिखना अपने आप में एक विशिष्टता है। डेनिश समाज को लेकर डेनमार्क में हिंदी में लिखा ‘वेयर डू आई बिलान्ग’ पहला उपन्यास है। अक्सर यह चर्चा होती रहती है कि इस देश के मूल नागरिकों का प्रवासियों के प्रति क्या दृष्टिकोण है। वेयर डू आई बिलान्ग के द्वारा इमीग्रेन्टस का दृष्टिकोण पता लगता है कि वे जिस देश में रहते हैं उस देश के विषय में क्या सोचते हैं और उनकी क्या परेशानियाँ हैं।” इसके अतिरिक्त उन्होंने कोपनहेगन यूनीवर्सिटी में इंडोलोजी व आधुनिक भारत पर चल रहे शैक्षिक कार्यक्रमों पर भी प्रकाश डाला। ऋतु कृष्णन ने कहा- “हिन्दी पुस्तकें मैं कोई खास नहीं पढ़ती थी। ‘वेयर डू आई बिलान्ग’ पढ़ते हुये मै इसमें इतनी रम गई कि इसके पात्रों व घटनाओं में खो गई। हिन्दी किताबों के प्रति मेरा रुझान बढ़ गया।” मूलतः तमिल प्रदेश की रहने वाली अखिला रमन ने कहा- ‘यह उपन्यास युवा पीढ़ी के लिये है। और इसकी सफलता तभी है जब यह अधिक से अधिक युवकों के पास पहुँचे।” अन्त में लेखिका ने ऐशियन म्यूजिक फोरनिंग संस्था, डॉ कैनथ ज्यूस्क़, अपने पाठकों व श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुये कहा- “किसी रचना विशेष पर पाठकों की टिप्पणी व किसी संस्था द्वारा उसकी पुस्तक का लोकापर्ण करवाना लेखक को नवीन ऊर्जा से भर देता है जिससे उसका साहित्य सर्जन थमता नहीं।”
लीडस, यूके से आयी भारतीय सांस्कृतिक संगीत मंडली ने सुर व ताल से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। कुल मिला कर समारोह में संगीत व साहित्य का बेजोड़ समन्यव था। ऐशियन म्यूजिक संस्था के व्यवस्थापक डॉली शैनाय व मनबीर सिंह ने कहा- “पहली बार हमारी संस्था के समारोह में किसी पुस्तक का लोकापर्ण हुआ है, नया अनुभव है…।”
- चाँद शुक्ला
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