सोमवार, 27 दिसंबर 2010

प्रेम जनमेजय आचार्य निरंजननाथ सम्मान से सम्मानित


राजसमंद। साहित्यिक पत्रिका 'संबोधन` द्वारा अणुव्रत विश्वभारती सभागार में आयोजित भव्य समारोह में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय को उनकी कृति 'कौन कुटिल खल कामी` के लिए आचार्य निरंजननाथ सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान समिति के अध्यक्ष कर्नल देशबंधु आचार्य ने जनमेजय को सम्मान राशि २५ हजार रुपए, मधुसूदन पांडया ने शॅल एवं श्रीफल, विष्णु नागर ने स्मृति चिह्न, अध्यक्ष जीतमल कच्छारा ने मेवाड़ी पाग, डॉ० भगवतीलाल व्यास ने प्रशस्ति पत्र, समारोह संयोजक कमर मेवाड़ी ने साहित्य एवं एम डी कनोरिया ने श्री जी का बीड़ा भेंट कर सम्मानित किया।

समारोह एवं पुरस्कार समिति के संयोजक सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री कमर मेवाड़ी ने सम्मान चयन की निष्पक्ष प्रक्रिया की जानकारी दी। उन्होंने सम्मानित साहित्यकार प्रेम जनमेजय के साहित्यिक योगदान को रेखांकित किया तथा 'कौन कुटिल खामी` की व्यंग्य रचनाओं सशक्तता पर प्रकाश डाला। नरेंद्र निर्मल ने, इस अवसर पर नंद चतुर्वेदी के बधाई संदेश का वाचन किया। अफजल खां अफजल ने डॉ० प्रेम जनमेजय का विस्तृत परिचय दिया। इस अवसर पर श्रीमती सुधा आचार्य की प्रथम काव्य कृति का भी लोकार्पण विष्णु नागर ने किया। श्रीमती आचार्य ने अपनी चुनिंदा रचनाओं का पाठ किया।

सम्मानित साहित्यकार प्रेम जनमेजय ने कहा कि व्यंग्य लिखना एक दायित्वपूर्ण कर्म है। उसे सचेत होकर विवेकपूर्ण व्यंग्य करना चाहिए। वंचितों पर कभी भी व्यंग्य नहीं करना चाहिए। साहित्य मानव समाज की निरंतर बेहतरी के लिए लिखा जाता है। आज व्यंग्य के उपमान मैले हो गए हैं। राजनीति पर लिखे गए व्यंग्य अभिधा से गंधाने लगे हैं। आज आवश्यक्ता है बदलते हुए समाज में बाजारवाद के कारण उपजी विसंगतियों पर प्रहार करने की। प्रेम जनमेजय ने साहित्य के क्षेत्र में 'संबोधन` ४५ वर्षों के योगदान को विशिष्टि रूप से योगदान कमर मेवाड़ी के योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने सुझाव दिया कि अगला वर्ष आचार्य निरंजननाथ का शताब्दी वर्ष है अत: इस अवसर पर उनकी अप्रकाशित तथा प्रकाशित रचनाओं को एक स्थान पर संकलित कर प्रकाशित किया जाए। प्रेम जनमेजय ने इस सम्मान को प्रतिष्ठापूर्ण बताया। इस अवसर पर प्रेम जनमेजय ने अपना व्यंग्य ' वसंत, तुम कहां हो` भी पढ़ा।

समारोह के मुख्य अतिथि एवं पुरस्कार समिति के सदस्य श्री विष्णु नागर ने कहा कि निरंजननाथ आचार्य सहज व्यक्तित्व के धनी एवं आमजन से गहरी सहानुभूति रखने वाले व्यक्तित्व थे। वे उस पंरपरा के आखिरी संवाहक थे जिन्होंने राजनीति एवं साहित्य के बीच संतुलन बनाए रखा। श्री विष्णु नागर ने कहा कि प्रेम जनमेजय की अपनी व्यंग्य रचनाओं में आत्म व्यंग्य करने से कभी चूकते नहीं हैं। उन्होंने 'कौन कुटिल खल कामी` की रचनाओं की पठनीयता को रेखांकित करते हुए कहा कि इनमे आज के बदलते सामाजिक परिवेश की विसंगतियों पर सार्थक प्रहार हैं। विष्णु नागर ने लघु पत्रिकाओं के प्रकाशन के संकट की चर्चा करते हुए संबोधन की ४५ वर्षों की निरंतरता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने साहित्य के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज का समय पढ़ने-खिने से दुश्मनी का समय है। तब शब्द की सत्ता की परवाह कौन करता है। रचनाकार के लिए यह संकट का समय है। डॉ० भगवतीलाल व्यास ने व्यंग्य साहित्य में प्रेम जनमेजय की विशिष्टता की चर्चा की तथा 'व्यंग्य यात्रा` के महत्व को रेखांकित किया।

सम्मान समारोह के अध्यक्ष कर्नल देशबंधु आचार्य ने कहा कि जन्म शताब्दी के अवसर पर एक ग्रंथ प्रकाशित किया जाएगा एवं विविध आयोजनों के प्रस्तावों पर भी विचार किया जाएगा। उन्होंनें अपने पिता के अनेक संस्मरण भी सुनाए।उन्होंने अगले वर्ष पुरस्कार राशि बढ़ाकार ३१ हजार करने की तथा अगले वर्ष से किसी भी विधा की प्रथम कृति को ११ हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा की। कार्यक्रम का सफल संचालन श्री नरेंद्र निर्मल ने किया।

प्रस्तुति: नरेंद्र निर्मल

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