सीहोर के युवा कहानीकार पंकज सुबीर को उनके उपन्यास के लिए इस वर्ष का ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार दिया जा रहा है। भारतीय ज्ञानपीठ ने २००९ को उपन्यास वर्ष मनाते हुए नवलेखन पुरस्कार को उनके उपन्यास 'ये वो सहर तो नहीं' के लिये दिये जाने की घोषणा की थी। इसके लिए एक चयन समिति शीर्ष आलोचक डॉ. नामवर सिंह की अध्यक्षता में बनाई गई थी। जिसमें शीर्ष कथाकार तथा नया ज्ञानोदय के संपादक रवीन्द्र कालिया, आलोचक डॉ. विजय मोहन सिंह, कथाकार चित्रा मुद्गल, कथाकार अखिलेश सम्मिलित थे। देश भर से प्राप्त पांडुलिपियों में से चयन करके ये पुरस्कार प्रदान किया जाना था।
भारतीय ज्ञानपीठ ने इस नवलेखन के देश के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए इकसठ हजार रुपए की पुरस्कार राशि प्रदान किए जाने का निर्णय लिया था। तथा चयनित पांडुलिपि को भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित करने का भी फैसला लिया गया था। गत दिवस चयन समिति की बैठक में वर्ष २०१० के ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार के लिए सीहोर के युवा कथाकार पंकज सुबीर तथा दिल्ली के कथाकार कुणाल सिंह को संयुक्त रूप से ये पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय लिया गया। दोनों संयुक्त विजेताओं को पुरस्कार की राशि का आधा आधा प्रदान किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष भी पंकज सुबीर का एक कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार योजना के अंतर्गत प्रकाशित होकर आया था, जो साहित्यिक हलकों में काफी चर्चित रहा था।
मध्य प्रदेश के जिला मुख्यालय सीहोर के युवा कथाकार पंकज सुबीर की पचास से भी अधिक कहानियाँ देश भर की साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। व्यवसाय से स्वतंत्र पत्रकार पंकज सुबीर अपनी विशिष्ट शैली तथा शिल्प के लिए जाने जाते हैं। युवा पीढी क़े नए कथाकारों में अपनी व्यंग्य निहित भाषा से वे अपनी अलग ही पहचान बना चुके हैं। 'ये वो सहर तो नहीं' में उन्होंने १८५७ से लेकर २००८ तक की कथा को व्यंग्य निहित भाषा में समेटा है। निर्णायकों के अनुसार इस उपन्यास में व्यंग्य का जो भाव है वह राग दरबारी की याद दिला देता है।
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