चित्र में- बायें से डॉ टी महादेव राव, प्रो पी आदेश्वर राव, नीरव कुमार वर्मा और संतांष अलेक्स
विशाखपटनम में हिन्दी साहित्य, संस्कृति और रंगमंच को समर्पित संस्था 'सृजन' के तत्वावधान में क्षेत्र के प्रसिद्ध अनुवादक संतोष अलेक्स द्वारा हिन्दी में अनूदित काव्य संग्रह 'कविता के पक्ष में नहीं' का विमोचन और साहित्य चर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त श्री जयंत महापात्रा की चुनी हुई ५० अंग्रेजी कविताओं का अनुवाद संतोष अलेक्स ने कविता के पक्ष में नहीं शीर्षक से किया। पुस्तक का विमोचन प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार एवं वरिष्ठ हिन्दी आचार्य प्रो। पी आदेश्वर राव जी ने किया। उन्होंने अनुवाद को एक कठिन कार्य बताते हुए संतोष अलेक्स के अनुवादों की प्रशंसा की। प्रो. आदेश्वर राव ने कहा किछंदहीन कविता में भी गेयता प्रभावित करती है। कविता किसी भी भाषा की हो, उत्पन्न ध्वनि हमें प्रभावित करती और विचारशील बनाती है। उन्होंने जयंत महापात्रा की अंग्रेजी कविताओं की तुलना में अनुवाद को और भी सशक्त और मूलकृति से भी अधिक अच्छा कहा। कुछ कविताओं का उन्होंने विश्लेषण भी किया और अन्य कविताओं को सोदाहरण प्रस्तुत किया। पुस्तक विमोचन के लिए संतोष अलेक्स, संस्था के संयुक्त सचिव, ने आभार माना।
विशाखपटनम में हिन्दी साहित्य, संस्कृति और रंगमंच को समर्पित संस्था 'सृजन' के तत्वावधान में क्षेत्र के प्रसिद्ध अनुवादक संतोष अलेक्स द्वारा हिन्दी में अनूदित काव्य संग्रह 'कविता के पक्ष में नहीं' का विमोचन और साहित्य चर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त श्री जयंत महापात्रा की चुनी हुई ५० अंग्रेजी कविताओं का अनुवाद संतोष अलेक्स ने कविता के पक्ष में नहीं शीर्षक से किया। पुस्तक का विमोचन प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार एवं वरिष्ठ हिन्दी आचार्य प्रो। पी आदेश्वर राव जी ने किया। उन्होंने अनुवाद को एक कठिन कार्य बताते हुए संतोष अलेक्स के अनुवादों की प्रशंसा की। प्रो. आदेश्वर राव ने कहा किछंदहीन कविता में भी गेयता प्रभावित करती है। कविता किसी भी भाषा की हो, उत्पन्न ध्वनि हमें प्रभावित करती और विचारशील बनाती है। उन्होंने जयंत महापात्रा की अंग्रेजी कविताओं की तुलना में अनुवाद को और भी सशक्त और मूलकृति से भी अधिक अच्छा कहा। कुछ कविताओं का उन्होंने विश्लेषण भी किया और अन्य कविताओं को सोदाहरण प्रस्तुत किया। पुस्तक विमोचन के लिए संतोष अलेक्स, संस्था के संयुक्त सचिव, ने आभार माना।
कार्यक्रम की शुरुआत सृजन के सचिव डॉ टी महादेव राव के स्वागत एवं संस्था की गतिविधियों की जानकारी देने के साथ हुई। उन्होंने सृजन द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के पीछे नव रचनाकारों को प्रोत्साहित करने और पुराने लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित करने को संस्था का उद्देश्य बताया। अध्यक्षता कर रहे सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने अपने भाषण में उपस्थितों को नवलेखन पर ध्यान देने और समसामयिक साहित्य पढने को कहा ताकिवे बेहतर साहित्य सृजन कर सकें। साहित्य चर्चा का संचालन डॉ टी महादेव राव ने किया। सबसे पहले श्रीमती सीमा वर्मा ने कविता 'उचकन' का पाठ किया जिसमें प्राचीन बिम्बों को आधार बनाकर अलगाववादी विचारों के खिलाफ एकता की बात सशक्त ढंग से कही गई थी। श्रीमती पारनंदी निर्मला ने कहानी 'टोकन नंबर २०' पढा जिसमें वर्तमान में अस्पतालों में जारी भ्रष्टाचार और निर्दयी स्थितियों का वर्णन था। देश की अखंडता को रेखांकित करती कविता 'नही मिटेगा हिन्दुस्तान' का पाठ किया रजनीश तिवारी ने, जिसमें भावुकता भरे संवेदनशील भारतीय की मनोवेदना थी। बिंबों के माध्यम से दिनचर्या की बातों को जोडती कविता 'निरीह मन' तथा प्रेमानुभूतियों युक्त कविता 'नन्हीं बूँद' का प्रभावी प्रस्तुतीकरण किया वीरेन्द्र राय ने।
जी अप्पाराव 'राज' ने कुछ सामयिक व्यंग्य कवितायें सुनाईं, जिसमें राजनीति में हो रही छेड-छाड का वर्णन रहा। आरुधि त्रिवेदी ने जीवन दर्शन की कविता 'पल दो पल में' का पाठ किया जिसमें जीवन के लक्ष्यों और मूल्यों की बात कही गई थी। दो कवितायें 'नक्षत्र' और 'तुम्हारा क्या है' का पाठ किया डॉ विजय गोपाल ने जिसमें मध्यवर्गीय मानव की व्यथा और विचार थे। बी एस मूर्ति ने दो पैरोडी कवितायें सुनाई 'लिंग भेद' और ' बैक का कर्ज', जिनमें समाज में चल रही कुछ बातों पर करारा व्यंग्य छुपा था। कृष्ण कुमार ने 'जिंदगी' शीर्षक कविता प्रस्तुत की जिसमें जीवन के बदलते पहलुओं का, जीवन मूल्यों का खुलासा था। नीरव कुमार वर्मा ने स्कूलों के खुलते ही अभिभावकों की परेशानियों और समस्याओं पर करारा व्यंग्य सुनाया अपने व्यंग्य 'फिर खलना स्कूलों का' में। संतोष अलेक्स ने अनूदित कविता 'कविता के पक्ष में नहीं' का पाठ किया। डॉ टी मादेव राव ने आशावादी स्वर को रेखांकित करती दो रुबाइयाँ और आज के आम आदमी की व्यथा का पक्ष लेती गजल 'आओ जीने का कोई नया बहाना ढूढें' प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में विजयकुमार राजगोपाल, डॉ पी नरसा रेड्डी, डॉ के शांति, डॉ जीवीवी सत्यनारायणा ने भी सक्रिय प्रतिभागिता की। सभी रचनाओं पर चर्चा भी हुई और रचनाकारों को अच्छे सुझाव भी दिए। डॉ टी महादेव राव के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।
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