७ जून, २००९ न्यू यार्क में पूर्णमासी के दिन, श्रीमती पूर्णिमा देसाई के शिक्षायतन के देवालय में डा. अंजना संधीर के सम्मान में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। स्वागत के शब्दों में शिक्षायतन की संस्थापिका एवं निर्देशिका पूर्णिमा देसाई ने कहा, " मैं एक ऐसी विभूति को बुला रही हूँ जिन्होने साहित्य के प्रचार में, संस्कृति के प्रचार में अपना योगदान दिया है और वह है डा. अंजना संधीर" जिन्होने मंच की शान बढाते हुए दीप प्रज्वलित किया। शिक्षायतन संस्था के संगीत विभाग से जुड़े सुर-सागर के श्री पंडित कमल मिश्रा जी ने माता के चरणों में गुलाब के फूलों को अर्पित करते हुए सरस्वती वंदना की। अपने भावों को व्यक्त करते हुए अंजना जी ने कहा " मै यहीं हूँ, यहीं थी और यहाँ से कहीं नहीं गयी।" अपने व्याख्यान में अधिक न कहते हुए उन्होने यू. के. से आए डा. कृष्ण कुमार जी को सादर आमंत्रित किया जिन्होंने अपने विचार प्रस्तुत करने से पहले पूर्णिमा जी को बधाई की पात्र मानते हुए अंजना के लिये कहा कि " अंजना जी का काम बोलता है"
भावों के आदान प्रदान के पश्चात् काव्य गोष्टी प्रारंभ हुई पहली रचना का पाठ किया डा. दाऊजी गुप्त ने, जो लखनऊ से पधारे थे। यू. के. से डा. कृष्ण कुमार जी ने अपनी रचना का पाठ के बाद अपने साथी साहित्यकार और कविगणों को आवाज़ दी जिनमें वहाँ उपस्थित थे डॉ.कृष्ण कन्हैया, श्रीमती जय वर्मा, श्री नरेन्द्र ग्रोवर और श्रीमती स्वर्ण तलवाड़। उनके पश्चात अनूप और रजनी भार्गव ने अपनी नन्हीं नन्हीं कविताओं की कोपलों से ज़िन्दगी के अंकुरित नए रंग माहौल में भर दिए। टोरंटो से श्री गोपाल बघेल जी ने सस्वर अपनी रचना का पाठ किया। फिर मंच को थामा न्यू यार्क तथा न्यू जर्सी के कवियों ने जिसमें जिनमें शामिल रहे श्री अशोक व्यास, श्री ललित अल्लुवालिया, मंजू राइ, बिन्देश्वरी अग्रवाल, अंजना संधीर, पूर्णिमा देसाई, गौतमजी, पुष्पा मल्होत्रा, नीना वाही, अनुराधा चंदर, डा. अनिल प्रभा, गिरीश वैद्य, देवी नागरानी, लखनऊ से आई श्रीमती शशि तिवारी और उनकी सुपुत्री शिवरंजनी। श्रोताओं में रहे श्री कथूरिया जी, परवीन शाहीन, रेनू नंदा और अनेकों साहित्यप्रेमी। यहाँ मैं डॉ. सरिता मेहता का ज़िक्र ज़रूर करना चाहूंगी, जो खुद विध्याधाम संस्था की निर्देशिका है और अच्छी कवयित्री भी। इस काव्य सुधा की शाम में उनका पूरी तरह से सहकार रहा। समाप्ति की ओर कदम बढाते हुए पूर्णिमा जी ने अंजना जी का सन्मान " साहित्य मणि' की उपाधि से श्री दाऊजी गुप्त के हाथों से करवाया, और सभी कविजनों का धन्यवाद किया। कार्यक्रम की समाप्ति भोजन के साथ हुई। -- देवी नागरानी
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