प्रख्यात अभिनेता अनुपम खेर की मुम्बई स्थित संस्था ‘एक्टर्ज प्रिपेयर्स‘ एवं ‘गेयटी ड्रामाटिक सोसाईटी‘ शिमला द्वारा प्रथम अभिनय कार्यशाला के समापन समारोह के अवसर पर कथाकार एस.आर.हरनोट की बहुचर्चित कहानी ‘बेज़ुबान दोस्त‘ का सफल मंचन किया गया और उन्हें इस कहानी के लिए सम्मानित भी किया गया। संस्था के निर्देशक अभिनेता यशराज जाधव और कलाकार मुनीष प्रेम शर्मा की देखरेख में, एक माह से चल रही प्रशिक्षण कार्यशाला के ४९ कलाकारों से ‘बेजुबान‘ शीर्षक से इस नाटक को तैयार करवाया गया था। दो घण्टों की इस आकर्षक और मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति में छह वर्ष की बालिका से लेकर साठ वर्ष तक के वरिष्ठ कलाकार शामिल थे जिन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों को भावविभोर कर दिया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्रीमति मनीषा नंदा, प्रधान सचिव, भाषा एवं संस्कृति, हिमाचल प्रदेश सरकार और निदेशक भाषा और संस्कृति श्री दिनेश कंवर ने एस.आर.हरनोट को कहानी के लिए और यशपाल जाधव और उनके सहयोगी मुनीश शर्मा को निर्देशन के लिए सम्मानित भी किया। अनुपम खेर ने इस सशक्त कहानी के लिए हरनोट को मुम्बई से फोन पर बधाई भी दी।
‘बेजुबान दोस्त‘ कहानी पहली बार दिल्ली से निकलने वाली हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘पक्षधर‘ में प्रख्यात साहित्यकार प्रो. दूधनाथ सिंह की इस टिप्पणी के साथ वर्ष २००७ मई के अंक में छपी थी कि ‘‘यह कहानी एक आधुनिक लोक-कथा है जो अपने शिल्प और अपने अन्तर्कथ्य में बेजोड़ है। कहानी हिमालय के पर्यावरण को छिन्न-भिन्न करने के प्रयत्न के विरोध की एक अद्भुत कल्पना के साथ-साथ मनुष्य और प्रकृति के सम्मिलन का एक निर्वेद भी है। एक स्वप्न है कथाकार का। एक चाहना है कि ऐसा ही हो। लोगों के फटे-पुराने कोटों की जेबों में चिड़ियों के घोंसले हों और प्रकृति सहचर हो, चरवाहे और पशुओं में मौन वार्तालाप हो।‘‘
कहानी ’बेजुबान दोस्त‘ एस.आर.हरनोट के गत वर्ष प्रकाशति कहानी संग्रह ‘मिट्टी के लोग‘ में संग्रहीत है और पाठकों और आलोचकों ने इसे खूब सराहा है। कहानी में पर्यावरण को बचाने की बात एक विक्षिप्त ग्रामीण किशोर किशन के माध्यम से कही और बुनी गयी है। यह पात्र प्रकृति का अन्तरंग भक्त है और कोई ऐसी बात बर्दाश्त नहीं करता जो यथास्थित भूगोल, प्राणिसंसार और परिवेश से छेड़छाड़ करती हो। सिमैंट की फैक्ट्री के लिए जब उसके गाँव के जंगल के सात सौ पेड़ कटने की बात पता चली तो वह यह सोच कर परेशान होने लगा कि अब उसके पशु कहाँ चरेंगे, चिड़ियाँ अपने घोसले कहाँ बनाएँगी, जंगल के दूसरे जानवर कहाँ रहेंगे। वह इसका विरोध अपने बेजुबान दोस्त पशुओं और पक्षियों के साथ बतियाते हुए करता चला जाता है और अंत में उसकी मुहिम में पूरा गाँव जुड जाता है। फैक्ट्री के लोगों और पुलिस की फौज के साथ जब किशन भिड़ता है तो उसके साथ हजारों पशु, कुत्ते, बच्चे और गाँव के हर उम्र के लोग तो होते हैं पर लाठियों और गोलियों से उस विद्रोह को कुचलने की हर संभव कोशिश की जाती है। किशन के साथ बहुत से लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और गाँव के पशु डर कर घाटियों में भाग जाते हैं। कुछ दिनों बाद जब गाँव के लोग उन्हें तलाशने पहाडियों पर जाते हैं तो वहाँ झाड़ियों में जगह जगह अपने पुराने कोटों को देखकर हैरान रह जाते हैं जिन्हें कभी किशन ने चुरा दिया था। वे जैसे ही नजदीक जाते हैं तो कोटों की जेबों से चिड़ियों के बच्चों के चहचाने की आवाजें आने लगती है क्योंकि पेड़ कटने के बाद इन्हीं जेबों में उन्होंने घोसले बना दिए हैं। जानेमाने वरिष्ठ आलोचक और कवि श्रीनिवास श्रीकान्त का कहना है कि ‘‘ इस कहानी में पर्यावरण जैसे अति संवेदनशील और जरूरी मुद्दे को हरनोट ने बड़ी शिद्दत के साथ उठाया है जो मन को दहला देता है।‘‘
इस कहानी का सफल मंचन और वह भी ४९ प्रशिक्षणार्थियों से गेयटी जैसे ऐतिहासिक सभागार में करवाना ‘अनुपम खेर की राइटरस प्रिपेयरस संथा और उसके निर्देशक यशपाल जाधव की सूझबूझ और आधुनिक तकनीक का ही कमाल था। एस. आर. हरनोट सहत्तरोत्तर दशक में उभरे एक ऐसे गल्पकार है जिन्होंने हिमाचल के पर्वतीय देहात की अपनी कहानियों में सांस्कृतिक व सामाजिक पड़ताल करने के साथ-साथ कुछेक कहानियाँ ऐसी भी कही हैं जिनमें पर्यावरण के मुद्दे को तीव्रता के साथ लिया गया है जिनमें उनकी बेहद लोकप्रिय और चर्चित कहानी ‘बेजुबां दोस्त‘ भी शामिल है।
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