विशाखापटनम की हिन्दी साहित्य, संस्कृति एवं रंगमंच को समर्पित संस्था “सृजन” ने दिनांक ३० अक्टूबर २०११ को डाबा गार्डन्स स्थित पवन एनक्लेसव के प्रथम तल पर विविध विधाओं की हिन्दीस साहित्य चर्चा का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. टी महादेव राव, सचिव, सृजन ने की जबकि संचालन किया सृजन के अध्ययक्ष नीरव कुमार वर्मा ने। स्वागत भाषण देते हुए कार्यक्रम एवं सृजन संबंधी विवरण प्रस्तुजत किया सृजन के संयुक्त सचिव डॉ. संतोष अलेक्स ने। सृजन ने हाल ही में दिवंगत हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यसकार श्रीलाल शुक्ल तथा सृजन के वरिष्ठ सदस्य, राजभाषा अधिकारी ओम प्रकाश एवं सृजन के समर्थक, हिन्दी कार्यक्रम अधिशासी आकाशवाणी रमणन स्वामी को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम में सबसे पहले श्रीमती मीना गुप्ता ने दीपावली पर्व को अंधेरे पर उजाले की जीत बताते हुए कविता “दीप पर्व” सुनाया। साथ ही टीवी धारावाहिकों से प्रभावित वर्तमान जीवन शैली पर अपनी कविता “मेरे घर आई सुनामी” प्रस्तुत की। श्रीमति श्वेता कुमारी ने स्त्री शक्ति की बढती उपलब्धियों का लेखा जोखा अपनी कविता “नारी” में प्रस्तुत किया। विश्वनाथाचारी ने अपनी “धरती और आकाश” कविताओं के माध्यम से प्रकृति की महत्ता दर्शाई। अपनी व्यंग्य क्षणिकाओं, गीत “हिन्दी से हिन्दुस्तान” लेकर प्रस्तुात हुए जी.अप्पांराव ‘राज’ जिसमें भारत की महानता का बखान था। श्री जी. ईश्वदर वर्मा द्वारा “तमसोमा ज्योदर्तिगमय” में दुर्जनों पर सज्जनों के द्वारा द्विगुणित दीप जलाकर उजाला करने का आह्वान किया गया। पवन कुमार गुप्ता ने “मां का दूध” कविता पढी जबकि श्रीनिवास ने “शिक्षक” एवं “महान भारत” कविताएँ प्रस्तुतत कीं। इसी क्रम में रामप्रसाद यादव ने “मन क्यों नहीं लगता?” और “लफ्ज” कविताएँ पढीं जिसमें मानवीय सम्बंधों में घटती आत्मीयता एवं बढते भौतिकवाद की बिंबात्मक प्रस्तुति थी। अपनी हास्य कहानी “सेफ्टी डिवाइज” में मशीनों पर आश्रित मानव की कठिनाइयों का खुलासा प्रस्तुत किया तोलेटि चंद्रशेखर ने। “मोटापा” शीर्षक हास्य कविता में बी.एस. मूर्ति ने वर्तमान में मानव जीवन की विडंबना पर हँसाया। जे. एस. यादव ने द्रौपदी को बिंब बनाकर वर्तमान समाज में नारी की विडंबना एवं ग्रामीण जीवन से टूटकर एकाकी होते मानव की त्रासदी अपनी कविताओं “कलयुग की द्रोपदी” तथा “जब से छुटा मेरा गाँव” में पेश किया। “मैं अबला कि तू अबला” कविता में वर्तमान समाज में पति पत्नीक के संबंधों, स्त्री शक्ति का अच्छा खुलासा किया श्रीमती दीपा गुप्ता ने। बीरेंद्र राय ने “चंदीले सपने” में सपने और उनसे जुडी शृंखला और यथार्थ प्रस्तुत किया। पर्यावरण प्रदूषण, प्रकृति के प्रकोप एवं ओजोन परत पर भावपूर्ण कविता “बुद्धिशाली पेश” किया डॉ. एम. सूर्यकुमारी ने। विभिन्न स्थितियों को बिम्ब बनाकर डॉ सन्तोक अलेक्स ने अपनी कविता “आँखें” पढी। एकाकी होते मानवीय संबंधों, विषम परिस्थितियों एवं क्षीण होते मानवीय मूल्यों पर आक्रोश व्यंक्त किया डॉ. टी. महादेव राव ने अपनी दो गजलों- “आओ जीने का” तथा “अजीब बशर हैं” में। नीरव कुमार वर्मा ने अपनी कहानी “यादों के दायरे” में दो सहेलियों की मर्मस्पर्शी कथा प्रस्तुत की।
इस कार्यक्रम में कृष्ण कुमार गुप्ता, विजय कुमार राजगोपाल, अशोक गुप्ता, सी एच ईश्वर राव आदि ने सक्रिय हिस्सा लिया। पढी गई प्रत्येक रचना पर चर्चा हुई जिसे सभी ने सराहा। सभी का मत था कि इस तरह के कार्यक्रमों से लिखने के लिए प्रोत्साहन एवं प्रेरणा मिलती है। डॉ. सन्तोष अलेक्स के धन्यावाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।
-डॉ. टी. महादेव राव
सचिव – सृजन
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