रविवार, 24 अक्टूबर 2010

लंदन की एक शाम – तीन डॉक्यूमेंटरी फ़िल्में


(बाएं से मीरा कौशिक, तेजेन्द्र शर्मा, दिव्या माथुर, डा. निखिल कौशिक, कैलाश बुधवार एवं. काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी )
कथा यू.के. एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने नेहरू सेंटर, लंदन में एक अनूठी शाम का आयोजन किया जिसमें वेल्स-निवासी नेत्र विशेषज्ञ, कवि, एवं फ़िल्मकार डा. निखिल कौशिक ने कथाकार-कवियत्री दिव्या माथुर, वरिष्ठ मीडिया हस्ती कैलाश बुधवार के साथ साथ कथाकार, फ़िल्म टीवी तथा मंच कलाकार, कवि व ग़ज़लकार तेजेन्द्र शर्मा पर निर्मित तीन डॉक्यूमेंटरी फ़िल्में दिखा कर नेहरू सेंटर में उपस्थित श्रोताओं को सम्मोहित कर दिया।

कार्यक्रम की शुरूआत में कथा यू.के. के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा ने हाल ही में दिवंगत हुए कवि-पत्रकार एवं मीडिया हस्ती डा. कन्हैया लाल नंदन को श्रद्धांजलि देते हुए उनके साथ अपने नज़दीकी संबंधों की चर्चा करते हुए उनके साथ अपनी बहामास, क्यूबा और त्रिनिदाद यात्राओं की चर्चा की। तेजेन्द्र शर्मा ने नंदन जी को नये रचनाकारों और ख़ासतौर पर प्रवासी लेखकों का मार्गदर्शक बताया। अपनी धीर गंभीर आवाज़ में तेजेन्द्र ने उनकी एक कविता का पाठ किया जो कि नंदन जी ने ३ अक्टूबर २००५ (यानि कि ठीक पांच वर्ष पूर्व) हस्पताल के बिस्तर पर डायलिसिस करवाने के बाद लिखी थी।
हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए, / मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।
मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं / उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।

प्रत्येक डाक्यूमेंटरी क़रीब क़रीब बीस से बाईस मिनट लम्बी थी। सबसे पहले दिव्या माथुर पर बनाई फ़िल्म दिखाई गई। दिव्या को निखिल ने एक ऐसे व्यक्तित्व की तरह पेश किया जो कि अपने काम के प्रति समर्पित, व्यवहार में विनम्र एवं परिवार के प्रति निष्ठा रखती हैं। दिव्या माथुर ने अपने लेखन के विषय में भी विस्तार से बात की और बताया कि जब एक विषय उनके दिमाग़ में पक्की तरह से बैठ जाता है तो वे लगातार उसी विषय पर लिखती चली जाती हैं। उनके क्ई एक कविता संकलन एक ही विषय पर आधारित हैं। डॉक्यूमेंटरी में डा. केसरी नाथ त्रिपाठी, डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, डा. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, मोनिका मोहता, रवि शर्मा और दिव्या के परिवार के सदस्यों सहित बहुत से लोगों ने दिव्या माथुर के प्रति अपने विचार व्यक्त किये।

कैलाश बुधवार पर बनाई डाक्युमेंटरी एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में है जिसे अपने बारे में कोई ग़लतफ़हमी नहीं; जो कभी भी किसी के बारे में कुछ ग़लत नहीं कहता; और जो अपने से अधिक अपने से वरिष्ठ लोगों के बारे में बात करके ख़ुश हो लेता है। शायद इसीलिये कैलाश जी ने अपनी डॉक्यूमेंटरी में पापाजी पृथ्वीराज कपूर और पृथ्वी थियेटर के बारे में अधिक बातें की और अपने व्यक्तित्व को ठीक उसी तरह छिपाए रखा जैसा कि वे पिछले चार दशकों से करते आ रहे हैं। उन्होंने अपने वरिष्ठ रेडियो की हस्तियों के बारे में बातें कीं जिनमें आले हसन, ज्ञान कौशिक, महेन्द्र कौल जैसे बहुत से लोग शामिल थे। श्रोताओं में बैठे नरेश कौशिक ने स्वीकार किया कि कैलाश जी ही उन्हें बीबीसी लंदन में लाए थे। कैलाश जी ने माइक पर आकर कहा कि वे अपने आपको इस तरह की किसी भी डॉक्यूमेंटरी के क़ाबिल नहीं समझते। वे हैरान भी थे कि मेट्रो स्ट्राइक, बारिश और कॉमनवेल्थ खेलों के सीधे प्रसारण के बावजूद लोग उनके बारे में निर्मित डाक्युमेंटरी देखने पहुंच गये।

ड़ा. निखिल कौशिक ने तेजेन्द्र शर्मा को ब्रिटेन के हिन्दी साहित्य का राजकपूर घोषित किया। उनका कहना था जिस प्रकार दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के मुग़ल गार्डन में किसी फ़िल्म की शूटिंग करने वाले राजकपूर पहले फ़िल्मकार थे, ठीक उसी तरह ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स एवं हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में कथा यू.के. सम्मान आयोजित करके तेजेन्द्र शर्मा ने हिन्दी का परचम अंग्रेज़ी के गढ़ में लहराया है। निखिल कौशिक ने अपनी डॉक्युमेंटरी के ज़रिये तेजेन्द्र शर्मा को एक कहानीकार, ग़ज़लकार, मंच एवं सिने कलाकार, नाटक निर्देशक, रेडियो पत्रकार एवं एक हिन्दी सेवी के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है। तेजेन्द्र ने अपने अंग्रेज़ी एवं हिन्दी लेखन व टीवी सीरियल लेखन के बारे में बातचीत भी की है। तेजेन्द्र शर्मा की लिखी एक ग़ज़ल ‘जो तुम न मानो मुझे अपना, हक़ तुम्हारा है / यहां जो आ गया इक बार, वो हमारा है’ भी इस फ़िल्म में शामिल की गई। इस ग़ज़ल का संगीत बनाया अर्पण पटेल ने और स्वर दिया मीतल ने। तेजेन्द्र के व्यक्तित्व पर प्रो. अमीन मुग़ल, कैलाश बुधवार, डा. अचला शर्मा, मोनिका मोहता, रवि शर्मा, राकेश दुबे, आदि ने अपने अपने विचार रखे। अचला शर्मा के अनुसार तेजेन्द्र ने हिन्दी को मंदिरों से बाहर निकाल कर ब्रिटिश संसद में पहुंचा दिया है।

धन्यवाद ज्ञापन देते हुए काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने कहा कि किसी भी देश या समुदाय की प्रगति उसकी सांसकृतिक गतिविधियों पर आधारित होती है। डा. निखिल कौशिक लेखक, पत्रकार एवं संस्कृति कर्मियों के कार्यों को उजागर करने के लिये एक नई विधा से हमारा परिचय करवाया है। मुझे उम्मीद है कि जल्दी ही हमें निखिल कौशिक पर निर्मित डाक्युमेंटरी भी देखने को मिलेगी। कार्यक्रम में निखिल कौशिक ने दर्शकों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये।

अन्य लोगों के अतिरिक्त काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, मीरा कौशिक, उषा राजे सक्सेना, बीबीसी के नरेश कौशिक और शिवकांत, श्री इस्माइल चुनारा, श्रीमती अरुणा अजितसरिया, निखिल गौर, अरुण बेदी आदि भी शाम को सफल बनाने के लिये मौजूद थे।

: दीप्ति शर्मा

कोई टिप्पणी नहीं: