हैदराबाद, १७ अक्तूबर, २०१०, प्रतिष्ठित हिंदी सेवी स्व. वेमूरि आंजनेय शर्मा के 94वें जयंती समारोह के अवसर पर श्री वेमूरि आंजनेय शर्मा स्मारक ट्रस्ट द्वारा वर्ष २०१० के स्मारक पुरस्कार प्रदान किए गए। जयंती एवं पुरस्कार समारोह यहाँ रवींद्र भारती में प्रबंधक न्यासी प्रो. वेमूरि हरिनारायण शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस अवसर पर वरिष्ठ तेलुगु पत्रकार पोत्तूरि वेंकटेश्वर राव मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
स्मरणीय है कि ट्रस्ट द्वारा प्रति वर्ष तेलुगु साहित्य, हिंदी साहित्य और अभिनय जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए दस-दस हजार रुपये के तीन नकद पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किए जाते हैं। इस वर्ष तेलुगु साहित्य के लिए यह पुरस्कार 83 वर्षीय वरिष्ठ साहित्यकार महामहोपाध्याय डॉ. पुल्लेल श्रीरामचंद्रुडु को प्रदान किया गया, जिन्होंने तेलुगु तथा संस्कृत साहित्य को अपनी मौलिक तथा अनूदित रचनाओं से सुसंपन्न किया है।
स्मरणीय है कि ट्रस्ट द्वारा प्रति वर्ष तेलुगु साहित्य, हिंदी साहित्य और अभिनय जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए दस-दस हजार रुपये के तीन नकद पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किए जाते हैं। इस वर्ष तेलुगु साहित्य के लिए यह पुरस्कार 83 वर्षीय वरिष्ठ साहित्यकार महामहोपाध्याय डॉ. पुल्लेल श्रीरामचंद्रुडु को प्रदान किया गया, जिन्होंने तेलुगु तथा संस्कृत साहित्य को अपनी मौलिक तथा अनूदित रचनाओं से सुसंपन्न किया है।
हिंदी साहित्य के लिए इस वर्ष ‘राष्ट्र नायक’ पत्रिका के संपादक ७५ वर्षीय डॉ. हरिश्चंद्र विद्यार्थी को हैदराबाद में हिंदी भाषा, साहित्य और पत्रकारिता के उन्नयन के लिए दिया गया। इसी प्रकार प्रसिद्ध तेलुगु रंगकर्मी ७५ वर्षीय डॉ. मोदलि नागभूषण शर्मा को अभिनय जगत में योगदान के लिए पुरस्कृत किया गया। इसके अतिरिक्त न्यास की ओर से विभिन्न छात्र-छात्राओं को 'प्रतिभा पुरस्कार' और ‘सरस्वती पुरस्कार’ भी वितरित किए गए।
आरंभ में मुख्य अतिथि पोत्तूरि वेंकटेश्वर राव ने मट्टपर्ति वीरांजनेयुलु द्वारा चित्रित वेमूरि आंजनेय शर्मा के विशाल तैलचित्र को लोकार्पित किया। इस अवसर पर संबोधित करते हुए पोत्तूरि वेंकटेश्वर राव ने कहा कि वेमूरि आंजनेय शर्मा ने अपना पूरा जीवन हिंदी की सेवा और भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय के कार्य के लिए समर्पित कर दिया, अतः वे सही अर्थों में दक्षिण और उत्तर के सामाजिक-सांस्कृतिक सेतु के निर्माता थे। डॉ. पोत्तूरि ने आंजनेय शर्मा जी द्वारा दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के माध्यम से राष्ट्रीय अखंडता और सामासिक संस्कृति के संरक्षण के लिए किए गए प्रयासों का स्मरण करते हुए उन्हें नई पीढ़ी के लिए अनुकरणीय और आदर्श बताया।
पुरस्कृत विद्वानों को समर्पित किए गए प्रशस्ति पत्रों का वाचन विद्यानाथ शास्त्री, कृष्णमूर्ति और ज्योत्स्ना कुमारी ने किया। समारोह का संचालन डॉ. पेरिशेट्टी श्रीनिवास राव ने किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें