मंगलवार, 31 अगस्त 2010

भारत-नार्वे लेखक सेमिनार

दिनांक १७ अगस्त, लिटरेचर हाउस, ओस्लो में भारतीय-नार्वेजीय लेखक सेमिनार सम्पन्न हुआ। सेमिनार का विषय था 'भारत नार्वे के मध्य साहित्यिक सम्बन्ध'। यह सेमिनार दो नोबेल साहित्य पुरस्कार विजेताओं 'रवीन्द्र नाथ टैगोर और ब्योर्नस्त्यार्ने ब्योर्नसन के विषय में था। टैगोर की १५० वीं जयन्ती और ब्योर्नसन की १०० वीं पुण्यतिथि इसी वर्ष है। 'रवीन्द्र नाथ टैगोर' और कबीर पर अपना व्याख्यान गुरूनानक देव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हरमहेन्द्र सिंह बेदी ने दिया और विश्वकवि टैगोर पर अपना व्याख्यान दिया प्रो असीम दत्ताराय ने। राष्ट्रीय चेतना के नायक नार्वेजीय लेखक ब्योर्नस्त्यार्ने ब्योर्नसन पर अपना व्याख्यान दिया सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने। लघु पत्रिकाओं की साहित्य में भूमिका पर अपना व्याख्यान दिया विनोद बब्बर ने तथा गुरूमत का भारतीय साहित्य में योगदान पर अपना वक्तव्य दिया डा ग़ुरूनाम कौर ने। नार्वेजीय राजदूत आन ओल्लेस्ताद ने भारत में नार्वे के साहित्य के अनुवाद पर प्रकाश डालते हुए दोनो देशों के सांस्कृतिक सम्बन्धों पर प्रकाश डाला। भारतीय राजदूत ने भी भारत और नार्वे के मध्य सांस्कृतिक संबंधों के वृहत्तर होने की पुष्टि करते हुए २२ वर्ष पुरानी और नार्वे से प्रकाशित एक मात्र हिन्दी पत्रिका 'स्पाइल-दर्पण' तथा सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' के योगदान को दोनो देशों के मध्य साहित्यिक और सांश्कृतिक संबन्धों को मजबूत बनाने वाल बताया। पहले सत्र के बाद दूसरे सत्र में अनेक नार्वेजीय और प्रवासी कवियों ने अपनी कवितायें पढ़ीं जिन्हें बहुत सराहा गया।

नार्वे में भारतीय लेखक सम्मानित

इस सेमिनार के दो दिन पूर्व नार्वे में इण्डो नार्विजन इनफारमेशन एण्ड कल्चरल फोरम के तत्वाधान में १५ अगस्त को चिली संस्कृति केंन्द्र वाइतवेत, ओस्लो मेऋ २२वें अन्तराष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह में भारतीय लेखकों को हिन्दी सेवा के लिए पुरस्कृत किया गया। पुरस्कृत लेखकों में बालशौरि रेडडी, प्रो हरमहोन्द्र सिंह बेदी, राष्ट्रकिंकर के सम्पादक विनोद ब्ब्बर, डा ग़ुरूनाम कौर, यालमार शेलान को भारतीय दूतावास के दिनेश कुमार नन्दा, पी ब़ालाचन्द्रन और डिस्ट्रिक्ट के मेयर थूरस्ताइन विंगेर ने प्रदान किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता फोरम के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने की। कार्यक्रम में हिन्दी स्कूल के बच्चों ने हिन्दी और संस्कृत में गायत्री मन्त्र और राष्ट्रगान गाया जिसे बहुत पसन्द किया गया। भारतीय, श्रीलंका एवं चिली के कलाकारों ने अपने-अपने देशों के लोकनृत्य प्रस्तुत किया। 'ए मेरे वतन के लोगों, 'ए मेरे प्यारे वतन' और 'हमारा स्वर्ग सा भारत' पसन्द किया गया। बालशौरि रेडडी ने हिन्दी और तेलगू में, विनोद बब्बर जी ने हिन्दी में, प्रो ह़रमहोन्द्र सिंह बेदी ने हिन्दी, डा गुरूनाम कौर ने पंजाबी में अपनी-अपनी कवितायें सुनायी। स्थानीय लेखकों में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', राय भटटी, दलजीत सिंह, माया भारती और नार्वेजीय लेखकों में सिगरीद मारिये रेफसुम, इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन और लीव एवेनसेन प्रमुख थे।

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