रविवार, 25 अप्रैल 2010

उपन्यासकार श्री अभिमन्यु अनत के मुंबई आगमन पर कथा यू.के. द्वारा गोष्ठी का आयोजन


मॉरीशस के प्रख्यात कथाकार, उपन्यासकार श्री अभिमन्यु अनत के मुंबई आगमन पर कथा यू.के. ने एक अनौपचारिक गोष्ठी का आयोजन किया। गोष्ठी के आरंभ में पुष्पा भारती जी ने भारतीयों लोगों के मारिशस में जाने, वहाँ सषंर्घ करने और पीढि़यों तक हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद वहाँ के समाज, संस्कृति और राजनीति में अपनी जगह बनाने की रोचक लेकिन लोमहर्षक कथा सुनाई। पुष्पा जी की बात से अपनी बात शुरू करते हुए अनत जी ने बताया कि वहाँ गए लोगों पर जो अत्याचार किये गए, वे उन्हें ले जाने वाले पानी के जहाजों से ही शुरू हो गये थे लेकिन हर तरह की तकलीफें भोगते हुए भी उन अनपढ़, भले और भोले भारतीयों ने मारीशस के खेतों से सचमुच चीनी के रूप में व्हा़इट गोल्ड पैदा करके दिखाया और मारीशस की अर्थ व्यवस्था को बदल कर रख दिया। अनत जी ने बताया उन्होंने खुद खेतों में काम किया है और मार खायी है। उन्होंने ये भी बताया कि लाल पसीना के नायक उनके सगे मामा थे। इस उपन्यास का अनुवाद फ्रेंच सहित कई भाषाओं में हुआ है।

अनत जी ने मारीशस में भारतीयों की दशा, भाषा के प्रति उनके प्रेम और भारतीयता के प्रति उनके आदर की बात बतायी और इस बा‍त पर दुख प्रकट किया कि उन्हें भारत में लोग भाषाओं के प्रति ज्य़ादा ही लापरवाह लगे और कहा कि यहाँ कोई भी भाषा न तो सही बोली जाती है और न ही लिखी ही जाती है जबकि मारीशस के लोग भाषा की शुद्धता के प्रति सतर्क हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वे भारत आ कर, भाषा, संस्कृ ति और समाज के बदलते मूल्यों को ले कर निराश होते हैं तो अनत जी ने कहा कि अब वे इस तरह के बदलावों के लिए तैयार हो कर आते हैं और मन पर कोई बोझ नहीं रखते। उन्होंने इस बात पर अवश्य दुख प्रकट किया कि यह अवमूल्यन सब जगह है और मारीशस की फिल्मों , टीवी के कार्यक्रमों में भी और भोजपुरी भाषा में भी इस तरह की गिरावट और बाज़ारूपन आने लगा है। कवि रमन जी ने बताया कि भारत में तो भोजपुरी भाषा का यह आलम है कि वह पूरी तरह से अश्लील गीतों, फिल्मों और लटकों, झटकों में फंस गयी है। कभी पंजाबी और गुजराती भाषाएँ भी इस तरह के दौर से गुजर चुकी हैं। एक और सवाल के जवाब में अनत जी ने बताया कि मारीशस में पहली कक्षा से ले कर शोध के स्तार तक हिंदी का पठन पाठन हो रहा है और मुफ्त में हो रहा है।

यह पूछे जाने पर कि वे अपनी किस किताब पर फिल्म बनवाया जाना पसंद करेंगे और क्यों तो उन्होंने लहरों की बेटी का नाम लिया। उनके विचार से इसमें मछुआरों के जीवन को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने ये भी बताया कि वे अब तक 72 पुस्तकें लिख चुके हैं और इनमें से कई रेडियो और टीवी पर प्रसारित होती रही हैं। अपने बाद की पीढ़ी के हिंदी लेखन के प्रति अनत जी आश्वस्त नज़र आये और उन्होंने कई नाम गिनाये लेकिन वहाँ के हिंदी प्रकाशनों को ले कर वे संतुष्ट‍ नहीं थे। ये पूछे जाने पर कि उनका साहित्य समाज को क्या संदेश देता है तो उन्होंने जवाब दिया कि अगर संदेश ही देने का काम करना होता तो वे डाकिया बनना पसंद करते। साहित्यकार का काम सवाल उठाना होता है और वे ये काम बखूबी कर रहे हैं।

लगभग ढाई घंटे चली इस गोष्ठी में मुंबई का लगभग पूरा कथा साहित्य समुदाय उपस्थित था। गोविंद मिश्र, आबिद सुरती, विश्वनाथ सचदेव, पुष्पा भारती, सूर् बाला, आर के पालीवाल, धीरेन्द्र अस्थागना, हरियश राय, रमेश राजहंस, रमन मिश्र, शैलेंद्र गौड, कुलदीप, अनूप सेठी, दिनेश लखनपाल, संजय उपाध्याय, राजम नटराजम पिल्लै, रत्ना झा, प्रतिमा शर्मा आदि ने उपनी उपस्थिति से इस गोष्ठी को गरिमा प्रदान की।

मधु अरोड़ा,
मुंबई।

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