रविवार, 31 जनवरी 2010
'सृजन' द्वारा 'साहित्य चर्चा' का सफल आयोजन
स्थानीय साहित्य संस्था 'सृजन' ने डाबा गार्डेन्स स्थित पवन एनक्लेव में साहित्य चर्चा कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया। मुख्य अतिथि थे सेवा मुक्त वरिष्ठ हिन्दी आचार्य प्रो. एस. एम. इकबाल। अध्यक्षता की सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने और कार्यक्रम का संचालन सृजन के सचिव डॉ. टी. महादेव राव ने किया। स्वागत भाषण करते हुए डॉ. टी. महादेव राव ने संस्था की गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत किया और साहित्य चर्चा कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से नए लेखकों को प्रोत्साहन तो मिलता ही है साथ ही पुराने रचनाकारों को भी साहित्य सृजन के लिए प्रेरणा मिलेगी, जिससे नए साहित्य का सृजन होगा और हमारा हिन्दी साहित्य नई ऊँचाइयाँ छू सकेगा।
मुख्य अतिथि प्रो एस एम इकबाल ने आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से हिन्दी साहित्य की निस्वार्थ सेवा करती सृजन संस्था की सराहना की। उन्होंने अपने उदबोधन में कहा कि साहित्य का अर्थ है समाज का हित चाहने वाला और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों और दायित्वों के बारे में अधिक जागरूक होते हैं कवि और लेखक और समाज के हित में रचनाधर्मिता अपनाने की आज के युग में आवश्यकता है। सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने कहा कि विगत सात वर्षों से साहित्य सृजन करने वाले कवियों और लेखकों को संबल प्रदान करने वाली संस्था सृजन सही मार्गदर्शन दे रहा है। सभी रचनाकार ऐसी संस्था में आएँगे और गुणवत्तापूर्ण कार्यक्रम हम जो आयोजित कर रहे हैं, उन्हें और अधिक स्तरीय बनाने में सहयोग करेंगे ऐसा विश्वास है।
साहित्य चर्चा कार्यक्रम की शुरुआत सीमा वर्मा की कहानी 'छोटी' से हुआ, जिमें उन्होंने मानवीय संबंधों में आते बदलाव की और अनुभूतियों की बात की। तोलेटि चंद्रशेखर ने अपनी कविता मदारी में वर्तमान समय में आम बादमी की दुर्दशा और कठिन परिस्थितियों को रेखांकित किया। एन.डी. नरसिम्हा राव ने कहानी शांति के माध्यम से विधवा विवाह की बात कही। रामप्रसाद यादव ने बिंबों से भरी अपनी प्रभावी कवितायें द्रौपदी और सीता, गुलाब और धरती सुनाई। संगीता राज ने मर्मस्पर्शी दो कवितायें सुनाई जो कि कोमल अनुभूतियों के शब्द चित्र प्रतीत हो रहे थे। भारती शर्मा (प्रभात भारती) ने ताजमहल पर कविता पढी जो कि विविध आयाम लिए हुए था। वीरेंद्र राय की कविताओं में जीवन के लक्षणों के बारे में बिंबात्मक लेकिन मन को छूती अनुभूतियों और संवेदनाओं की उपस्थिति थी। बी.वी. राव और डॉ.जी. रामनारायण ने तेलुगु से अनूदित कवितायें मैं भी पढूँगा और मातृ सौंदर्य लहरी का पाठ किया। जी अप्पाराव राज ने राजनीतिक व्यंग्य कवितायें सुनाई जो कि वर्तमान व्यवस्था पर चोट थीं। सीमा शेखर ने प्रकृति, औरत और विशाखपटनम शीर्षक से स्त्री की विवशता, प्रकृति का प्रकोप और शहरीकरण से दूषित होते वातावरण की बात अपनी कविताओं में कही। डॉ विजय गोपाल संक्रांति और पतंग शीर्षक कविता में आजकल के परिवेश का बिंबात्मक प्रस्तुति की। संतोष अलेक्स ने सामयिक स्थितियों पर गजल पढी। नीरव कुमार वर्मा ने अपने व्यंग्य आम ही आम में हारस्य व्यंग्य के साथ नौकरीपेशा व्यक्तियों की परेशानियों का खुलासा किया। डॉ. टी. महादेव राव ने अपनी सामयिक गजलों में शहरीकरण के कारण दूर होते संबंध और अभिनय करते चेहरों की बात आशावादी स्वर के साथ प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में डॉ नरसा रेड्डी, विजयकुमार राजगोपाल, मुनिचन शा आदि अन्य लोगों ने भी सक्रियमा के साथ हिस्सा लिया। सभी रचनाओं पर सार्थक चर्चा हुई और अच्छे सुझाव भी रचनाकारों को दी गई। प्रो. एस.एम. इकबाल ने प्रतिभागियों को स्मृतिचिह्न प्रदान किए। संतोष अलेक्स के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।
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