रविवार, 28 जून 2009
'रजनी', 'गुड़िया का घर' और 'मुर्गाबी' का लोकार्पण
लखनऊ विश्वविद्यालय के डी पी सभागार में दि २२ अप्रैल २००९ को सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' द्वारा अनूदित विश्व प्रसिद्ध नार्वेजीय नाटककार हेनरिक इबसेन की कृतियों 'गुड़िया का घर' और 'मुर्गाबी' तथा १९८४ में रचित काव्यसंग्रह 'रजनी' का लोकार्पण उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निदेशक डा स़ुधाकर अदीब ने किया।
काव्यसंग्रह 'रजनी' पर अपने विचार प्रगट किये डा प़्रेमशंकर तिवारी, आनन्द शर्मा, डा. सुधाकार अदीब और प्रो हरिशंकर मिश्र ने तथा 'गुड़िया का घर' और 'मुर्गाबी' पर अपने विचार प्रगट किये प्रो राकेश चन्द्रा, प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने। शरद आलोक ने हेनरिक इबसेन को विश्व के नाटककारों का पितामह बताते हुए कहा कि अभी तक हेनरिक इबसेन का नाम हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में गलत लिखा जाता रहा है। उन्होंने एक अन्य उदाहरण देते हुए कहा कि नार्वे के नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक क्नुत हामसुन को काफी समय तक गलत नट हामसुन लिखा जाता रहा।
कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण से हुआ जिसमें स्वरस्वती वन्दना प्रस्तुत की शिवभजन कमलेश ने। कार्यक्रम का संचालन करते हुए नाटकों के अंश को नाटकीय अन्दाज मे प्रस्तुत किया डा कृष्णा जी श्रीवास्तव ने। 'गुड़िया का घर' के हिन्दी अनुवाद के अंशों को २००६ में ओस्लो मे सम्पन्न हुए अन्तराष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने प्रस्तुत किया था जिसमें डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव (लन्दन) मुख्य अतिथि थे।
चित्र में बायें से- डा क़ृष्णा जी श्रीवास्तव, योगेन्द्र प्रताप सिंह, प्रो. प़्रेमशंकर तिवारी, रामाश्रय सविता, सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', डा सुधाकर अदीब, आनन्द शर्मा और प्रो हरिशंकर मिश्र।
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