शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

उच्च शिक्षा और शोध संस्थान में निराला जयंती आयोजित


हैदराबाद , २ फरवरी, वसंत पंचमी के अवसर पर दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के विश्वविद्यालय विभाग, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान में महाप्राण निराला की ११३ वीं जयंती मनाई गई तथा ''वसंत पंचमी - निराला जयन्ती व्याख्यानमाला'' का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने की। सरस्वती पूजन और ''वर दे वीणावादिनी'' के गायन के साथ कार्यक्रम आरम्भ हुआ। आंध्र - सभा के सचिव के. विजयन ने अतिथियों का स्वागत किया. पीएच. डी. शोधार्थी अंजली मेहता और अर्पणा दीप्ति ने निराला के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला तथा अखिलेश हठीला ने निराला की कविताओं का वाचन किया। डॉ. बलविंदर कौर ने अतिथि व्याख्यानकर्ताओं का परिचय दिया। उद्घाटन भाषण करते हुए 'स्वतंत्र वार्ता' के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ला ने वसंत पंचमी को सरस्वती के जन्मदिन के रूप में सम्पूर्ण सृष्टि की सृजनशीलता की शक्ति की आराधना का उत्सव मानते हुए यह स्पष्ट किया कि सर्जना की आराधना में सत्य, शिव और सुंदर की साधना निहित है और प्रेम इसका आधारतत्व है। उन्होंने सरस्वती के मिथकीय स्वरुप की व्याख्या करते हुए कहा कि विचार-रूप में सरस्वती विधाता की संगिनी अर्थात पत्नी है तथा रचना अथवा सृष्टि-रूप में पुत्री भी है, उन्होंने निराला को स्रष्टा और सृष्टि की विराट और उदात्त संभावनाओं को व्यक्त करने वाले कवि के रूप में भारतीय कविता के गौरव की संज्ञा दी।

इस अवसर पर ''महाप्राण निराला की सर्जनात्मकता'' की व्याख्या करते हुए मुख्यवक्ता डॉ. कविता वाचक्नवी ने कहा कि निराला आधुनिक हिन्दी कविता के शीर्ष पुरुष और विरल कवि हैं। प्रकृति, प्रेम, प्रगति और पौरुष को निराला के साहित्य के मूलबिंदु बताते हुए उन्होंने निराला को व्यक्तिगत लगाव और हुंकार के ऐसे कवि बताया जिनकी बहु-आयामी और विलक्षण रचनाशीलता निरंतर मौलिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है.निराला की रचनाओं को प्रतिभा के विस्फोट का प्रतीक मानते हुए डॉ.कविता ने कहा कि उन्हें किसी एक विचारधारा तक सीमित करना उचित नहीं है, बल्कि उनका पाठ-विश्लेषण नई-पुरानी आलोचना दृष्टियों से करने पर ही सरोकार की व्यापकता और विश्व-दृष्टि की विराटता को समझा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि डॉ. कविता वाचक्नवी ने ''हिन्दुस्तानी एकेडेमी'' द्वारा प्रकाशित अपनी शोधपूर्ण कृति ''समाज भाषाविज्ञान : रंग शब्दावली : निराला काव्य'' में निराला की काव्य भाषा का समाज भाषावैज्ञानिक दृष्टि से विवेचन करते हुए रंग-शब्दावली के आधार पर उनकी काव्य-चेतना का विश्लेषण किया है। अध्यक्षासन से संबोधित करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने निराला की रचनाओं में निहित उदात्त-तत्त्व पर प्रकाश डालने के साथ-साथ ''जागो फिर एक बार'' जैसी कविताओं की कालजयी प्रासंगिकता को रेखांकित किया। इस अवसर पर चंद्रमौलेश्वर प्रसाद, डॉ.जी. नीरजा, डॉ.मृत्युंजय सिंह तथा भगवंत गौड़र भी मंचासीन थे।

संस्थान के पीएच डी, एम.फिल., एम.ए., अनुवाद और पत्रकारिता पाठ्यक्रम के जिन छात्रों, शोधार्थियों और प्रतिभागियों ने चर्चा -परिचर्चा द्वारा प्रश्नोत्तर सत्र को जीवंत बनाया उनमें डॉ. शक्ति कुमार द्विवेदी, डॉ.सुषमा देवी, डॉ.बी. बालाजी, शिव कुमार राजौरिया, श्रद्धा तिवारी, कैलाशवती, सलमा कौसर, रीना झा, पी ज्योति, वंदना पाटिल, ,पुष्प कुमारी, निशा सोनी, वेंकट रमन, अशोक तिवारी, एस वंदना, सीमा मिश्रा, गणाचारी श्रीनिवास राव, आकाश, राजेंद्र गौड़, मुहम्मद कुतुबुद्दीन, पूनम पंवार, के नागेश्वर राव, प्रियंका रथ, राम कृष्ण, अनुराधा पाण्डेय और रेखा के नाम उल्लेखनीय हैं। शिव कुमार राजौरिया ने धन्यवाद प्रकट किया।

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