रविवार, 13 जनवरी 2013

राजस्थान पत्रिका का सृजनात्मक साहित्य सम्मान-२०१३

जयपुर, ७ जनवरी २०१३ को जयपुर के भट्टारकजी की नसियां स्थित इन्द्रलोक सभागार में पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यान समारोह का भव्य आयोजन किया गया। इस आयोजन में सृजनात्मक साहित्य सम्मान-२०१३ के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।

पत्रिका समूह के परशिष्टों में प्रकाशित होने वाली कहानियों और कविताओं में प्रथम और द्वितीय का चयन करके दोनों विधा के रचनाकारों को प्रतिवर्ष सम्मानित कर क्रमशः ग्यारह हजार और पाँच हजार रुपए की राशि भी भेंट की जाती है। इस साल कविता में प्रथम पुरस्कार अवनीश सिंह चौहान तथा द्वितीय पुरस्कार प्रीता भार्गव को दिया गया। कहानी में पहला पुरस्कार राहुल प्रकाश को तथा दूसरा पुरस्कार कथाकार मालचंद तिवाड़ी को दिया गया। कविता में पहला पुरस्कार प्राप्त करने वाले अवनीश सिंह चौहान युवा कवियों में अपना अहम स्थान रखते हैं। हमलोग परिशिष्ट में प्रकाशित उनके तीन गीत- 'किसको कौन उबारे', 'क्या कहे सुलेखा' तथा 'चिंताओं का बोझ- ज़िन्दगी' आम आदमी के संघर्ष और रोजी-रोटी के लिए उसके प्रयासों को रेखांकित करते हैं और भी कई अनकही पीड़ाओं को बयां करते हैं। अब अवनीश के ये गीत उनके सद्यः प्रकाशित संग्रह 'टुकड़ा कागज़ का' में संकलित हैं। आयोजन का शुभारम्भ माँ सरस्वती के समक्ष जनरल वी.के. सिंह जी और गुलाब कोठारी जी द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता एवं विशिष्ट अतिथि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह रहे जबकि पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

इस साल कहानी और कविता के निर्णायक मंडल में मशहूर व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी, प्रसिद्ध कथाकार हबीब कैफी और प्रफुल्ल प्रभाकर तथा जस्टिस शिवकुमार शर्मा, अजहर हाशमी और प्रोफेसर माधव हाड़ा थे। पत्रिका समूह की ओर से दिए जाने वाले सृजनात्मक साहित्य पुरस्कारों के क्रम में यह सत्रहवें पुरस्कार हैं। ये पुरस्कार १९९६ से शुरू किये गये थे। इस अवसर पर पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले राजस्थान पत्रिका के पत्रकारों को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में शहर के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। आनंद जोशी, चाँद मोहम्मद, डॉ दुष्यंत, शालिनीजी एवं वर्षाजी का विशेष सहयोग रहा और आभार अभिव्यक्ति सुकुमार वर्मा ने की।
 
अवनीश 

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

अनुराग सेवा संस्थान लालसोट द्वारा ११ साहित्यकारोँ का सम्मान

लालसोट, रविवार ६ जनवरी, अनुराग सेवा संस्थान लालसोट जिला दौसा राजस्थान द्वारा संस्कृत महाविद्यालय में को आयोजित एक भव्य समारोह में देश के ११ सहित्यकारोँ को उनकी विभिन्न विधाओं की साहित्यिक कृतियों के लिये ‘अनुराग साहित्य सम्मान २०१२ प्रदान किये गए।
 
शरद तैलंग को उनके व्यंग्य संग्रह ‘गुस्से में है भैँस, वरिष्ठ साहित्यकार ब्रजेन्द्र कौशिक को काव्य संग्रह ‘किस घाट उतरें , कथाकार अरनी रॉबर्ट्स को कहानी संग्रह ‘रास्ते अपने अपने, भगवती प्रसाद कुलश्रेष्ठ को ‘फिर पलाश दहके, डॉ बानो सरताज को ‘एक अनार सौ बीमार, विजया गोस्वामी को ‘माँ होने का सुख, कमल कपूर को ‘नीम अब भी हरा है, राम दयाल मेहरा को ‘नाविक होता पार नहीं, अशोक यादव को ‘लघु सी कथाएँ, डॉ प्रमोद कोवप्रत को ‘धरती और धड़कन तथा राजीव व्यास को ‘छोटी बात बडी बात’ कृतियों के लिये सम्मानित किया गया। इन्हें सम्मान स्वरूप २१०० रुपये नकद, प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, शॉल, नारियल एवं कलम भेट की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कला समीक्षक हेमंत शेष तथा समारोह के अध्यक्ष लालसोट नगर पालिका के चेयरमेन दिनेश मिश्रा थे।
 
आयोजन समिति के संरक्षक गोपाल प्रसाद मुदगल, अध्यक्ष एवं साहित्यकार तारादत्त निर्विरोध तथा संस्था के सचिव श्याम सुन्दर शर्मा ने अपने प्रतिवेदन में संस्था की विभिन्न क्षेत्रों मे की गई गतिविधियों की जानकारी दी। इस अवसर पर सम्मानित हुए रचनाकारों ने अपनी रचनाओँ का पाठ भी किया। कार्यक्रम में संयोजक सियाराम शर्मा, साहित्यकार प्रकाश परिमल, जया गोस्वामी, अध्यक्ष पुरुषोत्तम जोशी, बस्ती राम बस्ती, राजेन्द्र आज़ाद, राजेन्द्र यादव, अनुराग तथा बड़ी मात्रा में गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन विनीत उपाध्याय ने किया।

प्रस्तुति : शरद तैलंग

शरद तैलंग का व्यंग्य संग्रह ‘गुस्से में है भैंस’ लोकार्पित

कोटा, ५ जनवरी २०१३, राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर तथा ‘काव्य मधुबन’ संस्था कोटा द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘अखिल भारतीय व्यंग्य समारोह’ में  व्यंग्यकार शरद तैलंग के व्यंग्य संग्रह ‘गुस्से मेँ है भैंस’ का लोकार्पण प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरीश नवल तथा प्रदीप पंत द्वारा किया गया ।

इस संग्रह मेँ तैलंग के २३ व्यंग्य शामिल हैँ । इस अवसर पर आयोजित समारोह में पूरे देश से आए हुए लगभग २५ से अधिक व्यंग्यकार, राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वेद व्यास, व्यंग्य यात्रा के सम्पादक डॉ प्रेम जन्मेजय, काव्य मधुवन के अध्यक्ष डॉ अतुल चतुर्वेदी तथा कोटा के अनेक साहित्यकार उपस्थित थे ।

सृजन द्वारा ‘डॉ हरि‍वंश राय बच्चन का रचना संसार ’ संगोष्ठी आयोजित

विशाखापटनम। ७ जनवरी २०१३ साहि‍त्य, संस्कृति‍ एवं रंगकर्म के प्रति‍ प्रति‍बद्ध स्थानीय संस्था ‘सृजन’ ने टोयो इंजीनीयरिंग कंपनी लिमिटेड के सौजन्य से द्वारकानगर पब्लिक लाइब्रेरी में ‘‘डॉ हरि‍वंश राय बच्चन का रचना संसार‘ पर संगोष्ठी का आयोजन कि‍या। स्वागत भाषण करते हुए डॉ. संतोष अलेक्स, संयुक्त सचि‍व, सृजन ने ‘सृजन’ की गति‍वि‍धि‍यों का वि‍वरण देते हुए इस संगोष्ठी. के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा - स्व. बच्चन जी की ग्यारहवीं पुण्य ति‍थि‍ के अवसर पर यह संगोष्ठीस आयोजि‍त की जा रही है, बच्चन जी के साहित्य पर उतना काम नहीं हुआ जितना होना चाहिए, अभी भी काफी काम किया जाना शेष है।
 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध कवि, अनुवादक एवं सेवानिवृत्त वरिष्ठ हिन्दी आचार्य प्रो. पी आदेश्वर राव ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में बच्चन की अमिट और अमर साहित्य की महत्ता को रेखांकित करते हुये उनके साथ अपनी एक मुलाक़ात का विवरण देते हुये उनकी लोकप्रियता से संबंधित बातें बतायीं। उन्होने कहा ‘’मधुशाला’’ जैसी अजर और अमर कृति‍ के सर्जक बच्चान ने अपनी काव्यतमयी प्रति‍भा का परि‍चय बखूबी दि‍या है साथ ही हि‍न्दीम साहि‍त्यक का अब तक की श्रेष्ठ आत्म्कथा लि‍खकर सि‍द्ध कर दि‍या हे कि‍ गद्य में भी उनका कोई सानी नहीं है। अपनी कवि‍ताओं में, गीतों में, लेखों में और अनुवादों में अपनी वि‍शि‍ष्ट ता का परि‍चय हरि‍वंश राय बच्चमन ने दि‍या है।

कार्यक्रम की अध्येक्षता कर रहे सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने बच्चन के साहित्य संसार को अद्भुत और अमर धरोहर बताते हुये उनके अनुवादों के विषय में बताया की अंग्रेजी, अरबी और उर्दू से हिन्दी में किया गया अनुवाद मौलिकता का आभास देता है और ऐसे सहज लगते हैं जैसे हम शेक्सपियर और उमर खयाम की मूल रचनाएँ पढ़ रहे हैं। संगोष्ठी का संचालन कर रहे सृजन के सचिव डॉ. टी. महादेव राव ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि बच्चन अपनी सारी रचनाओं में चाहे वह गद्य हो या पद्य हो मानवीयता के प्रति असीम विश्वास रखते थे। उन्होने हालावाद का कभी समर्थन नहीं किया बल्कि वे मधुशाला को प्रतीक के रूप में लेकर मानव जीवन के संघर्ष, नैतिक मूल्य, समसमाज के कल्याण चाहने वाले मानवतावादी रचनाकार रहे। वादों से दूर हटकर उन्होंने साहित्य रचा जो की हर पाठक के हृदय को अब भी छूता है। ऐसे कवि, गद्यकार, अनुवादक जैसे बहुआयामी रचनाकार के प्रति हर हिन्दी प्रेमी नतमस्तक है।

संगोष्ठीज में राघवेंद्र प्रताप अस्थाना ( मधुशाला की रुबाइयाँ), श्रीमती सीमा वर्मा (बच्चन-कविता ने जिन्हें लिखा), श्रीमती सीमा शेखर (बच्चन के गीतों में प्रेमाभिव्यक्ति), रामप्रसाद यादव (बच्चन की रचना प्रक्रिया), डॉ. संतोष एलेक्स (छायावादोत्तर काल और बच्चन), नीरव वर्मा (बच्चन के साहित्य पर बचपन की नारियों का प्रभाव), कपिल कुमार शर्मा (बच्चन और प्रकृति का संबंध), जी अप्पाराव “राज” ( मधुशाला पर कविता), देवनाथ सिंह (बच्चन का रचना संसार), डॉ टी महादेव राव (बच्चन की दर्शनिकता का प्रतीक – मधुशाला) ने अपने अपने पत्र प्रस्तुत किए जिनमें डॉ हरिवंश राय बच्चन जी के साहित्य के विविध पहलुओं पर विश्लेषण थे। योगेंद्र सिंह यादव (मॉर्निंग वॉक), डॉ एम सूर्यकुमारी (माँ की तड़प), के विश्वनाथाचारी (खास और कुछ नहीं) ने भी अपनी बात संगोष्ठी में रखी।

इस कार्यक्रम में डॉ बी वेंकट राव, राजेश कुमार गुप्ता, बी एस मूर्ति, एन शेखर, सीएच ईश्वार राव सहि‍त अन्यव लोगों ने भी सक्रि‍य प्रति‍भागि‍ता की। प्रतिभागियों को स्मृतिचिह्न प्रो. पी. आदेश्वर राव ने वितरित किए। डॉ संतोष एलेक्स के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।


डॉ. टी. महादेव राव
सचिव – सृजन

निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, बस्ती का सम्मान समारोह सम्पन्न

बस्ती (उत्तर प्रदेश), २५ दिसंबर, देश के विभिन्न राज्यों के मनीषी साहित्यकारों को साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये प्रतिष्ठित संस्था निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, बस्ती द्वारा राष्ट्रीय साहित्य गौरव सम्मान से अलंकृत किया गया। यह संस्था लंबे समय से विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित करती रही है। समारोह के मुख्य अतिथि बस्ती मंडल आयुक्त श्री सुशील कुमार थे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता मूर्धन्य साहित्यकार एवं पंजाब कला साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. राजेन्द्र परदेसी ने की।लगभग पाँच घंटे तक चले इस कार्यक्रम में हिंदी की विकास यात्रा पर आधारित परिचर्चा और राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसमें देश के १५ राज्यों से पधारे कवियों ने काव्य पाठ करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, बस्ती के संयोजक एवं अध्यक्ष डॉ. रामकृष्ण लाल जगमग की पहल पर आयोजित इस भव्य समारोह में पंजाब केसरी के जम्मू-कश्मीर प्रभारी एवं कथाकार बलराम सैनी एवं हरियाणा लोक साहित्य के अध्येता तथा छायाकार ओम प्रकाश कादयान के अलावा मुख्यतः त्रिलोक सिंह ठकुरेला (राजस्थान), नन्देश निर्मल खगड़िया (बिहार), कुँवर प्रेमिल जबलपुर (म.प्र.), कैलाश झा किंकर (बिहार), मोहम्मद मोइउद्दीन अतहर (म.प्र. ), किशनलाल शर्मा आगरा (उ.प्र.), डॉ. सरयू प्रसाद मिश्र बस्ती (उ.प्र.), डॉ. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी दीपक सिद्धार्थ नगर (उ.प्र.) और डॉ रामचंद्र यादव गोंडा (उ.प्र.) आदि को सम्मानित किया गया।

इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश के कुंवर प्रेमिल, महाराष्ट्र के यशवंतकर संतोष कुमार, सिक्किम के वीरभद्र, पश्चिम बंगाल के गोपाल नेवाल, उत्तराखंड के डा.केएल दीवान, बीएसए मनभरन राम राजभर, उप खंड शिक्षाधिकारी बृजेश त्रिपाठी, डा.सरयू प्रसाद मिश्र, डा.अयोध्या प्रसाद पांडेय, सत्येंद्र नाथ मतवाला, बृजराज शुक्ल, नवल किशोर, संतराम, अब्दुल कादिर, हरिश्चंद्र शुक्ल, राघवेंद्र शरण पांडेय, लालमणि प्रसाद, अफजल हुसैन, अनवार हुसैन पारसा, कैलाशनाथ दुबे, डा.रामचंद्र यादव, डा.ज्ञानेंद्र द्विवेदी, धर्मराज चौधरी को भी विविध क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। बाद में हुयी संगोष्ठी व कवि सम्मेलन में मुख्य रूप से डा.सत्यव्रत, डा.रामदुलारे पाठक, प्रेमशंकर द्विवेदी, कृष्ण कुमार उपाध्याय, सागर गोरखपुरी, अजय श्रीवास्तव, परमात्मा प्रसाद निर्दोष, डा.ओम प्रकाश पांडेय व रहमान अली रहमान ने भी प्रस्तुतियाँ दीं।

परिचर्चा के समय ओमप्रकाश कादयान, डॉ. सत्यव्रत, कैलाश झा किंकर और डॉ. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी दीपक ने हिंदी की दशा और दिशा पर विस्तार से प्रकाश डाला। मंच का संचालन डॉ. रामकृष्ण लाल जगमग और डॉ. अफजल हुसैन अफजल ने संयुक्त रूप से किया।

सोमवार, 7 जनवरी 2013

दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय का स्थापना पर्व सम्पन्न

२६ दिसंबर २०१२ भोपाल में दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय का स्थापना पर्व पाँच कलाकारों की कविता पोस्टर प्रदर्शनी ‘शब्दरंग’ के उद्घाटन और पाँच सृजनधर्मियों के अभिनन्दन के साथ आरम्भ हुआ। उत्सव का उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि मध्यप्रदेश के गृहमंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता ने किया। समारोह की अध्यक्षता पूर्व मुख्य सचिव एवं संग्रहालय के सरंक्षक डॉ. पुखराज मारू ने की। समारोह के पूर्व गृहमंत्री श्री गुप्ता एवं अन्य अतिथियों ने संग्रहालय का भ्रमण किया। श्री गुप्ता ने संग्रहालय परिषद के प्रयासों की सराहना की।

श्री गुप्ता ने कहा कि संग्रहालय की धरोहर और गतिविधियों की दृष्टि से यह स्थान अब छोटा पड़ने लगा है, अतः इसके विस्तार के लिए ध्यान देना होगा। समारोह के आरम्भ में संग्रहालय निदेशक राजुरकर राज ने संग्रहालय एवं स्थापना पर्व के बारे में जानकारी दी। संग्रहालय संरक्षक श्री सुशील कुमार अग्रवाल ने स्वागत भाषण में संग्रहालय के प्रयासों का उल्लेख किया और अपेक्षा की कि यथोचित सहयोग मिला तो यह दुनिया में अपनी तरह का संग्रहालय हो सकता है। अपने उद्बोधन में श्री गुप्ता ने कहा कि साहित्यकार समाज को प्रेरणा और ऊर्जा प्रदान करता है। उसकी धरोहर को सहेजना पूरी संस्कृति को सहेजना है। यह अनुकरणीय कार्य दुष्यन्त कुमार संग्रहालय कर रहा है, यह प्रशंसा के योग्य है। हमारा पूरा सहयोग संग्रहालय और उसके पदाधिकारियों को मिलेगा।

अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. पुखराज मारू ने कहा कि गैरसरकारी होने के बावजूद यह संग्रहालय साहित्य और संस्कृति के संरक्षण का महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। यहाँ हम अपने समृद्ध साहित्यिक अतीत का अवलोकन कर सकते हैं। पाँच दिवसीय समारोह के उद्घाटन अवसर पर राजधानी के वरिष्ठ साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी डॉ. रमाकान्त दुबे, डॉ. महावीर सिंह, श्री राजेन्द्र जोशी, श्री बटुक चतुर्वेदी और श्रीमती कमला सक्सेना का अभिनन्दन किया गया।

कला प्रदर्शनी शब्दरंग

आरम्भ में अतिथियों ने पाँच कलाकारों की पोस्टर प्रदर्शनी ‘शब्दरंग’ का उद्घाटन किया। ‘शब्दरंग’ में दुष्यन्त कुमार, निदा फाज़ली, अशोक निर्मल, दिवाकर वर्मा, डॉ. जगदीश व्योम, प्रो. नईम, डॉ. अजय पाठक आदि की कविताओं पर शारजाह की डॉ. पूर्णिमा वर्मन, रायपुर के श्री के. रवीन्द्र, दिल्ली के श्री विजेन्द्र विज, भोपाल के श्री श्रीकान्त आप्टे एवं छिन्दवाड़ा के श्री रोहित रूसिया के बनाये चित्र प्रदर्शित किये गए। कार्यक्रम के अंत में संग्रहालय की प्रबन्ध परिषद के अध्यक्ष श्री रामराव वामनकर ने कृतज्ञता व्यक्त की।

कवयित्री गोष्ठी

दूसरे दिन कवयित्री गोष्ठी में छाई रही मानवीय संवेदना ‘‘हर गली हर द्वार पर है आज दुःशासन/कहाँ से आयेंगे इतने कृष्ण/आजकल जैसे हर जगह पर है/धृतराष्ट्र का शासन’’-इस भावधारा की अनेक कविताएँ दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के स्थापना पर्व के दूसरे दिन कवयित्री गोष्ठी में प्रस्तुत की गईं। इस गोष्ठी में अतिथि के रूप में श्रीमती कमला सक्सेना, डॉ. राजश्री रावत राज, कुलतार कौर कक्कड़, आशा शर्मा उपस्थित थीं। कार्यक्रम का संयोजन श्रीमती उषा जायसवाल ने किया। गोष्ठी की कविताओं में मानवीय संवेदना और स्त्री पीड़ा प्रमुख विषय रहा। गोष्ठी में उषा जायसवाल ने मनुष्य की प्रवृत्ति को रेखांकित किया -‘आदमी देवता और भगवान/तीनो एक ही हैं/नहीं हैं ऐसा कोई आदमी/जो हो देवता से दूर/ऐसे ही आदमी/जब भूल जाता है अपने स्वार्थ को/जीना है परमार्थ को/बन जाता है देवता।’’ ‘पापा का चेहरा ढँके, ऐसा नहीं लिहाफ चाहिये/राह में रोड़ा नहीं, बस केवल मुझे इंसाफ चाहिये’-कहकर साधना बलवटे ने अपनी संवेदना को शब्द दिये। स्त्री की महत्वाकांक्षा पर केनिद्रत रचना का पाठ किया करुणा राजुरकर ने-‘काश, जि़न्दगी पंचम से ही षडज पर लौट आती/न जाती तार सप्तक तक/देर तक, बहुत देर तक ठहरने के लिए’। दुष्यन्त संग्रहालय के स्थापना पर्व पर आयोजित कवयित्री गोष्ठी में सुनीता कोमल, अलका रिसवुड, आशा श्रीवास्तव, उषा सक्सेना, मंजू जैन, मालती बसन्त, कुमकुम गुप्ता आदि ने रचनापाठ किया। संचालन अर्चना भारती ने किया एवं आभार श्रीमती प्रतिभा गोटीवाले ने किया।

व्यंग्य गोष्ठी
अफसरी पर आँच आये तो यह बात अफसरी के प्रोटोकाल के विरुद्ध कहलायेगी स्थापना पर्व का तीसरा दिन व्यंग्य गोष्ठी का था। मौजूदा दौर की सरकारी व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया देश के सुविख्यात व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने। वे दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा आयोजित स्थापना पर्व के तीसरे दिन व्यंग्य पाठ में अपनी रचना का पाठ कर रहे थे। समारोह के आरम्भ में निदेशक राजुरकर राज ने स्वागत वक्तव्य के साथ संग्रहालय के स्थापना पर्व पर प्रकाश डाला। संग्रहालय की अभिनव परम्परानुसार पुस्तक और पुष्प से अतिथियों का स्वागत किया गया। संचालन श्री श्रीकान्त आप्टे ने और आभार वक्तव्य श्री रामराव वामनकर ने किया। दिल्ली से आये व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय ने व्यंग्यपाठ किया-‘‘अपने पीने पर आक्रमण होता देख अच्छे अच्छे पतियों की खुमारी टूट जाती है। राधेलाल की भी टूटी। उसने प्रत्याक्रमण की मुद्रा में कहा, और तुम जो चाट वाले स्टाल पर भुक्खड़ की तरह लगी हुई थी, गोलगप्पे, दहीभल्ले, चीला, टिकिया और क्या क्या...’’- इस रचना के माध्यम से उन्होंने पारिवारिक परिवेश का व्यंग्य प्रस्तुत किया। श्री श्रीकान्त आप्टे ने संचालन करने के साथ ही अपनी व्यंग्य रचना ‘फिल्मों में स्नान पर्व’ का पाठ भी किया। दिल्ली के डॉ. लालित्य ललित ने ‘पल में तोला पल में माशा’ शीर्षक से व्यंग्य पढ़ा। देर तक चली इस व्यंग्य गोष्ठी में चारों व्यग्यकारों ने अनेक रचनाओं का पाठ किया। इस अवसर पर सर्वश्री रामराव वामनकर, मुकेश वर्मा, श्रीमती ममता तिवारी, महेन्द्र गोगिया, श्रीमती करुणा राजुरकर, श्री एनलाल जैन स्वदेशी आदि सहित अनेक साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

गजल संध्या

चौथे दिन संग्रहालय में गूँजे दुष्यन्त के बोल ‘कोई हंगामा करो, ऐसे गुज़र होगी नहीं’  ‘पक गई है आदतें बातों से सर होगी नहीं, कोई हंगामा करो, ऐसे गुज़र होगी नहीं’- दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में स्थापना पर्व के चौथे दिन ये आक्रोश उभरा दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लों में मशहूर ग़ज़लगायक जुल्फीकार अली की आवाज़ के जरिये। जुल्फीकार अली ने दुष्यन्त कुमार की अनेक ग़ज़लों की संगीतमय प्रस्तुति दी। ‘मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ’/इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और, या इसमें रोशनी का करो इन्तज़ाम और/मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिये, ऐसा भी क्या परहेज़ ज़रा-सी तो लीजिये........आदि ग़ज़लों से संग्रहालय परिसर को दुष्यन्तमय कर दिया।
पुरस्कार वितरण

समारोह के प्रारम्भिक चरण में कोरबा की भारत एल्यूमीनियम कम्पनी लिमिटेड के श्री पी.ए. मिश्रा, श्री विजय वाजपेयी एवं श्री दीपक विश्वकर्मा को भाषा भारती पुरस्कार से, समाजसेवा पुरस्कार सार्वजनिक भोजनालय सेवा समिति के श्री रामेश्वर बंसल एवं श्री मोहनलाल अग्रवाल को दिया गया, जबकि इन्दौर के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री संजीव मालवीय को उनके उलेखनीय कार्य के लिए सम्मानित किया गया। समारोह में अतिथि के रूप में श्री राजेन्द्र जोशी, श्री केशव जैन एवं श्री महेन्द्र चौधरी उपस्थित थे। स्वागत वक्तव्य श्री एनलाल जैन स्वदेशी ने दिया एवं कृतज्ञता ज्ञापन श्री मधुकर द्विवेदी ने किया। समारोह में दिल्ली में हुए असामाजिक कृत्य की घोर निन्दा की गई और मृत छात्रा के लिए शोक व्यक्त किया गया। इस सत्र का समापत टॉम आल्टर की प्रस्तुति के साथ हुआ- ‘‘जि़न्दगी और जंग, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं शायद...और जि़न्दगी रोज़ लड़ी जा रही जंग का नाम है...और जंग जि़न्दगी की आस में दर-दर भटकती उम्मीद का...कभी दोनों आमने-सामने आ खड़े होते हैं... कोई उम्मीद बर नज़र नहीं आती.....कोई सूरत नज़र नहीं आती...’’-ग़ालिब और मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं पर केन्द्रित थी प्रख्यात रंगकर्मी और सिने अभिनेता टॉम आल्टर की नाट्यप्रस्तुति ‘जुगलबन्दी’। प्रस्तुति में उनके साथ थे वरिष्ठ रंगकर्मी चन्दर खन्ना। भारत भवन में सम्पन्न अलंकरण समारोह में टॉम आल्टर ने अत्यन्त भावुक होकर अपने अतीत और अपने शुभचिन्तकों को याद किया। उन्होंने संग्रहालय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि दुष्यन्त कुमार संग्रहालय अपने आप में बेमिसाल है। यहाँ साहित्यिक धरोहर का संरक्षण तो है ही, इसकी नियमित गतिविधियाँ इसे जीवन्तता प्रदान करती हैं। प्रारम्भ में संग्रहालय अध्यक्ष श्री रामराव वामनकर ने स्वागत वक्तव्य देते हुए स्थापना पर्व की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। निदेशक राजुरकर राज ने दिल्ली में छात्रा की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए संग्रहालय की ओर से संवेदना व्यक्त की और कार्यक्रम का संचालन किया। अलंकरण समारोह के मुख्य अतिथि श्री मंजूर एहतेशाम ने सम्मानित साहित्यकारों को बधाई देते हुए कि सम्मान एक ओर उत्कृष्ट सृजन की सामाजिक स्वीकृति है, वहीं दायित्व का अहसास भी। विशष्ट अतिथि के रूप में श्री महेन्द्र चैधरी एवं श्री चन्दर खन्ना उपस्थित थे।

दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय की ओर से पद्मश्री टॉम आल्टर को विशिष्ट सेवा सम्मान एवं मैथिली साहित्यकार डॉ. विभूति आनन्द, (दंरभगा) को आंचलिक रचनाकार सम्मान से अलंकृत किया गया। संग्रहालय द्वारा सक्रिय सर्जनात्मक गतिविधि और राजभाषा में उल्लेखनीय कार्य के लिए पत्र-पत्रिकाओं को भी पुरस्कृत किया गया। इस वर्ष धर्मवीर भारती पुरस्कार दिल्ली की पत्रिका ‘शुक्रवार’ (सम्पादक श्री विष्णु नागर) को, माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार रायपुर की पत्रिका ‘सद्भावना दर्पण (सम्पादक श्री गिरीश पंकज) को, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार आईडीबीआई बैंक मुम्बई की पत्रिका ‘विकासप्रभा’ (सम्पादक डॉ. सुनील कुमार लाहोटी) को, विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार वनमाली सृजनपीठ भोपाल की पत्रिका रंग संवाद (सम्पादक विनय उपाध्याय) को एवं राजभाषा उत्कृष्टता पुरस्कार एनएचडीसी लिमिटेड, भोपाल को प्रदान किया गया। अन्त में आभार संग्रहालय के संरक्षक श्री सुशील अग्रवाल ने व्यक्त किया।

(संगीता राजुरकर)
सहायक निदेशक, प्रबन्ध